BA Semester-5 Paper-2B Econimics - International Economics - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2775
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B अर्थशास्त्र - अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- मिल द्वारा प्रतिपादित अन्तर्राष्ट्रीय मूल्यों के सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

अथवा
जे. एस. मिल के पारस्परिक माँग को समझाइए।
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया में माँग एवं पूर्ति की लोच के महत्व की व्याख्या कीजिए।
अथवा
पारस्परिक माँग के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

उत्तर -

मिल का पारस्परिक माँग का सिद्धान्त
(Mill's Theory of Reciprocal Demand)

जे.एस. मिल ने सर्वप्रथम रिकार्डो के सिद्धान्त का पुनः विचार अपनी पुस्तक 'Some unsettled Question' में किया। यह पुस्तक सन् 1829-30 में लिखी गई परन्तु इसका प्रकाशन 1844 मे हुआ। मिल ने रिकार्डो द्वारा प्रतिपादित तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की व्याख्या और भी अधिक स्पष्ट रूप से वस्तुओं की मांग और पूर्ति के आधार पर की है।

प्रो. मिल के अनुसार, दो देशों में वस्तु विनिमय की व्यापार शर्तों का निर्धारण अन्तर्राष्ट्रीय मांग के समीकरण द्वारा होता है, जिसे पारस्परिक मांग का सिद्धान्त भी कहते हैं। प्रो. मिल के शब्दों में "वस्तुओं के बीच व्यापार होने का वास्तविक अनुपात एक देश में अन्य देश की वस्तु के लिए मांग की लोच अथवा पारस्परिक माँग पर निर्भर करता है।' पारस्परिक मांग से आशय व्यापार करने वाले दो देशों के मध्य अपनी-अपनी वस्तुओं के रूप में एक-दूसरे की मांग की तीव्रता या लोच से है। दो देशों के मध्य दो वस्तुओं के उस विनिमय अनुपात पर साम्य की स्थिति होगी जहां प्रत्येक देश द्वारा आयात की जाने वाली वस्तु की मात्रा बराबर हो। पारस्परिक माँग के इस साम्य बिन्दु पर ही वस्तु विनिमय अनुपात स्थिर होगा।

पारस्परिक विनिमय अनुपात 'पारस्परिक माँग की लोच पर निर्भर करता है। यह एक देश के अनुकूल भी हो सकता है और प्रतिकूल भी। इसी के अनुरूप विदेशी व्यापार के लाभों में एक देश का सापेक्षिक हिस्सा निर्धारित होता है।

पारस्परिक माँग का सिद्धान्त निम्न मान्यताओं पर आधारित है

1- दो देश,
2- दो वस्तु,
3- दोनों वस्तुओं का उत्पादन स्थिर प्रतिफलों के नियम के अन्तर्गत होता है।
4- परिवहन लागतें शून्य हैं।
5- दोनों देशों की जरूरतें समान हैं।
6- दोनो देशों के मध्य स्वतन्त्र व्यापार है।
7- दोनों देशों के मध्य व्यापार सम्बन्धों में तुलनात्मक लागतों का नियम लागू होता है।

माना कि जर्मनी एक वर्ष में लिनन की 10 इकाइयों अथवा कपड़े की 10 इकाइयों का उत्पादन करता है और इंग्लैण्ड उतना ही श्रम समय लगाने से लिनन की 6 इकाइयों अथवा कपड़े की 8 इकाइयों का उत्पादन कर सकता है। मिल के अनुसार इकाइयों के उत्पादन से सम्बन्धित कर लिये जाने पर इंग्लैण्ड के हित में यह होगा कि वह जर्मनी से लिनन का आयात करे और जर्मनी के हित में होगा कि वह इंग्लैण्ड से कपड़े का आयात करे। इसका कारण यह है कि जर्मनी को लिनन तथा कपड़े के उत्पादन में निरपेक्ष लाभ है जब कि इंग्लैण्ड को कपड़े के उत्पादन में न्यूनतम तुलनात्मक हानि है।

उत्पादित वस्तुओं की मात्राएँ

 

देश उत्पादन लिनन इकाइयों में कपड़ा घरेलू विनिमय अनुपात
जर्मनी 10 10 1 : 1
इंगलैण्ड 6 8 1 : 1.33

मिल का पारस्परिक माँग का सिद्धान्त उन सम्भव शर्तों से सम्बन्ध रखता है जिन पर दो देशों के बीच दो वस्तुओं का परस्पर विनिमय होगा। प्रत्येक देश में श्रम की सापेक्ष कुशलता द्वारा स्थापित घरेलू विनिमय अनुपात व्यापार की सम्भव वस्तु विनिमय दरों की अथवा अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय अनुमात की सीमाओं को निर्धारित करते हैं।

मानाकि दो श्रम समय लगाने से जर्मनी में लिनन की 10 इकाइयों का तथा कपड़े की 10 इकाइयों का उत्पादन होता है जबकि इंग्लैण्ड में श्रम की वही मात्रा लिनन की 6 इकाइयों तथा कपड़े की 8 इकाइयों का उत्पादन करती है। लिनन तथा कपड़े के बीच घरेलू विनिमय अनुपात जर्मनी में 1 : 1 और इंग्लैण्ड में 1: 1.33 है।

इस प्रकार व्यापार की सम्भव शर्तों की सीमाएँ जर्मनी में 1 लिनन, 5.1 कपड़ा और इंग्लैण्ड से 1 लिनन, 1.33 कपड़ा है। इस प्रकार दोनों देशों के बीच व्यापार की शर्तें 1 लिनन या 1 कपड़ा अथवा 1.33 कपड़ा होगी। परन्तु वास्तविक अनुपात पारस्परिक माँग पर निर्भर करेगा अर्थात दूसरे देश की वस्तु के लिए प्रत्येक देश की माँग की शक्ति तथा लोच पर निर्भर करेगा।

वस्तु विनिमय शर्तों का सम्भव सीमा क्षेत्र व्यापार की उन सम्बद्ध घरेलू शर्तों से प्राप्त होगा जिन्हें प्रत्येक देश में तुलनात्मक कुशलता निर्धारित करती है। इस सीमा क्षेत्र के भीतर व्यापार की वास्तविक शर्तें प्रत्येक देश की वस्तु के लिए दूसरे देश की माँग पर निर्भर करती है और व्यापार की केवल वही वस्तु विनिमय शर्तें स्थिर रहेंगी जिन पर प्रत्येक देश द्वारा प्रस्तुत निर्यात उस देश द्वारा इच्छित आयातों का भुगतान करने के लिए पर्याप्त होगा

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माना कि इंग्लैण्ड केवल कपड़े का उत्पादन करता है जिसे क्षैतिज अक्ष पर लिया गया है, और जर्मनी केवल लिनन का उत्पादन करता है, जिसे लम्बवत् अक्ष पर लिया गया है। चित्र में OF वक्र इंग्लैण्ड का प्रस्ताव वक्र है। यह बताता है कि लिनन की दी हुई मात्रा के बदले इंग्लैण्ड कपड़े की जितनी इकाइयाँ छोड़ने को तैयार है। इसी प्रकार CG वक्र जर्मनी का प्रस्ताव वक्र है, जो बताता है कपड़े की दी हुई मात्रा के बदले जर्मनी लिनन की कितनी इकाइयाँ छोड़ने को तैयार है, बिन्दु T जहाँ दोनों प्रस्ताव वक्र OF तथा OG एक-दूसरे को काटते हैं, संतुलन बिन्दु है, जिस पर इंग्लैण्ड कपड़े की OC मात्रा के बदले जर्मनी के लिनन की OL मात्रा से व्यापार करता है। जिस दर पर लिनन के बदले कपड़े का विनिमय होता है वह रेखा OT के ढलान के बराबर है।

जब एक देश की ओर से दूसरे देश की वस्तु के लिए माँग में परिवर्तन होता है, तो इससे उस देश के प्रस्ताव वक्र का रूप बदल जाता है। यदि जर्मनी की लिनन के लिए इंग्लैण्ड की माँग बढ़ जाती है। अब इंग्लैण्ड जर्मनी को लिनन के बदले अधिक कपड़ा विनिमय करने को तैयार है जो जर्मनी के प्रस्ताव वक्र OG को T पर काटता है। अब इंग्लैण्ड लिनन को OL इकाइयों के बदले कपड़े की OC इकाइयों का व्यापार करता है। रेखा के ढलान द्वारा व्यक्त व्यापार शर्तें बताती हैं कि वे इंग्लैण्ड के लिए खराब हो गई हैं तथा जर्मनी के लिए अच्छी हो गई हैं। इंग्लैण्ड लिनन को L इकाइयों के बदले कपड़े की CC इकाइयाँ जर्मनी को देता है। क्योंकि LC से OG का भाग अधिक बढ़ा है।

इसी प्रकार यदि इंग्लैण्ड के कपड़े के लिए जर्मनी की माँग बढ़ जाती है, तो जर्मनी का प्रस्ताव वक्र बाएँ की ओर सरक कर OG पर चला जाता है, जो इंग्लैण्ड के प्रस्ताव वक्र OE को T2 पर काटता है। अब जर्मनी कपड़े की OL2 इकाइयों के बदले इंग्लैण्ड को लिनन की OL2 इकाइयों का विनिमय करता है। OT2 के ढलान द्वारा व्यक्त व्यापार शर्तें बताती हैं कि वे जर्मनी के लिए खराब और इंग्लैण्ड के लिए अच्छी हो गई हैं। जर्मनी कपड़े की कम मात्रा CC2 के बदले लिनन की अधिक मात्रा LL2 इंग्लैण्ड को देता है, अर्थात LL2 > CC2 । अतः दोनों देशों के बीच व्यापार की शर्तें घरेलू स्थिर लागत अनुपातों के बीच में रहेगी जिन्हें OG तथा OE रेखाएँ व्यक्त करती हैं।

लेकिन व्यापार की वास्तविक शर्तें प्रत्येक देश के प्रस्ताव वक्र की माँग की लोच पर निर्भर करेगी। किसी देश का प्रस्ताव वक्र जितना अधिक लोचदार होगा।

दूसरे देश की तुलना में व्यापार की शर्तें उसके उतना ही अधिक प्रतिकूल होंगी। इसके विपरीत उसका प्रस्ताव वक्र जितना अधिक बेलोच होगा दूसरे देश की अपेक्षा व्यापार की शर्तें उसके उतना ही अधिक अनुकूल होंगी।

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चित्र में OE तथा OG क्रमशः इंग्लैण्ड तथा जर्मनी के प्रस्ताव वक्र हैं। OE तथा OG क्रमशः दोनों देशों में लिनन तथा कपड़ा दोनों के उत्पादन के स्थिर घरेलू लागत अनुपात हैं। व्यापार की वास्तविक शर्ते बिन्दु P तय होती हैं जोकि ऐसा बिन्दु है जिस पर OF तथा OG तक दूसरे को काटते हैं। OT रेखा व्यापार की संतुलित शर्तों को व्यक्त करती है।

किसी देश का लाभ जिनता ही अधिक होगा, उतनी ही अधिक उस देश की व्यापार की शर्तें दूसरे देश की घरेलू शर्तों के निकट होंगी।

संक्षेप में, दो देशों के बीच विदेशी विनिमय अनुपात या व्यापार शर्तें और इस प्रकार विदेशी व्यापार से प्राप्त लाभों में हिस्से का निर्धारण पारस्परिक माँग की लोच द्वारा होगा। गणितीय रूप में 'पारस्परिक माँग की लोच आयातों की कीमतों से सापेक्ष में निर्यात की कीमतों में आनुपातिक परिवर्तन के प्रति उत्तर में आयतों की माँगी गयी मात्रा के आनुपातिक परिवर्तन की दर है।

यदि -

X = निर्यातों की कीमत
M = आयातों की मात्रा
Px = निर्यातों की कीमत
Pm = आयातों की कीमत

n. = पारस्परिक माँग की लोच हो तो 2775_35

इस प्रकार यदि n = 1 है तो विनिमय अनुपात साम्य की स्थिति में होगा और व्यापार के लाभ बराबर बँट जायेंगे। यदि n > 1 है तो विनिमय अनुपात सम्बद्ध देश के पक्ष में होगा और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ में सम्बन्ध देश का हिस्सा अधिक होगा। यदि n < 1 है, तो विदेशी विनिमय अनुपात सम्बन्धित देश के प्रतिकूल होगा तथा विदेशी व्यापार से प्राप्त लाभ में देश का हिस्सा सापेक्षिक रूप से कम होगा।

आलोचनात्मक मूल्यांकन

प्रो. मिल ने पारस्परिक माँग का सिद्धान्त प्रतिपादित करके रिकार्डो की एक बहुत बड़ी कमी को दूर कर दिया। उन्होंने एक ऐसी पृष्ठभूमि तैयार कर दी जिसके आधार पुर मार्शल ने इस सिद्धान्त का रेखाचित्रीय निरूपण किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने सिद्धांत का दो से अधिक वस्तुओं और दो से अधिक देशों पर भी लागू किया और बताया कि बहुपक्षीय विनिमय भी हो सकता है और एक ही साम्य बिन्दु के स्थान पर बहु साम्य बिन्दु भी हो सकते हैं। इसके बावजूद भी मिल के सिद्धांत की निम्न आधार पर आलोचनायें की जाती हैं :

1. अवास्तविक मान्यतायें : मिल का पारस्परिक माँग का सिद्धांत कुछ अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है, जैसे- पूर्ण रोजगार, पूर्ण प्रतियोगिता, स्वंतत्र विदेशी व्यापार, उत्पादन के साधनों में पूर्ण गतिशीलता, दो देश तथा द्विवस्तु मॉडल।

2. वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित : जेवन्स के अनुसार मिल का सिद्धांत व्यापार की वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित है और यह प्रणाली अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से उत्पन्न होने वाले लाभ का ठीक माप प्रस्तुत नहीं करती है।

3. स्वयं सिद्ध कथन : मिल के अनुसार व्यापार की शर्त का निर्धारण वहाँ होता है जहाँ आयात तथा निर्यात के मूल्य साम्य की स्थिति में हों। प्रो. शैडवेल का कहना है कि यह स्वयं सिद्ध है और व्यापार की शर्त के निर्धारण पर कोई प्रकाश नहीं डालता।

4. माँग की प्रभावहीनता : प्रो. ग्राह्य का विचार है कि अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय अनुपात को निर्धारित करने में माँग की दशाओं का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता। यह आलोचना तर्कहीन है।

5. पूर्ति सम्बन्धी दशाओं की उपेक्षा : प्रो. मार्शल के अनुसार मिल ने अपने सिद्धांत में पूर्ति सम्बन्धी स्थितियों की उपेक्षा की है।

वास्तव में केवल माँग दशायें ही व्यापार शर्तों को निर्धारित नहीं करतीं वरन् पूर्ति का भी इनके निर्धारण में महत्वपूर्ण हाथ होता है। मार्शल के ही शब्दों में, “विदेशी वस्तुओं के लिए देश की प्रभावपूर्ण माँग की लोच न केवल इसकी सम्पत्ति और उसके लिए इसकी जनसंख्या की इच्छाओं की लोच द्वारा बल्कि इसकी अपनी विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की पूर्ति को विदेशी बाजरों की मांग के साथ समायोजित करने की क्षमता द्वारा भी प्रभावित होती है।'

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र से आप क्या समझते हैं? इसकी विषय-सामग्री एवं क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री एवं क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र का अर्थ व परिभाषा दीजिए तथा इसके विषय क्षेत्र व विषय-सामग्री का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
  5. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र का क्या अर्थ है?
  6. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण कौन-कौन सी प्रमुख आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं?
  7. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से आप क्या समझते हैं? साथ ही यह भी स्पष्ट कीजिए कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार ने किन आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया है?
  8. प्रश्न- 'अन्तरक्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का आर्थिक आधार श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण है।' स्पष्ट कीजिए।
  9. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रभाव बताइये।
  10. प्रश्न- अन्तक्षेत्रीय व्यापार की प्रमुख विशेषताएँ कौन-सी हैं? अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार किस प्रकार अन्तर्क्षेत्रीय व्यापार से भिन्न है?
  11. प्रश्न- अन्तर्क्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर बताइये।
  12. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का क्या अर्थ है? अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का क्या महत्व है?
  13. प्रश्न- विदेश व्यापार से क्या लाभ होते हैं?
  14. प्रश्न- विदेशी व्यापार से क्या-क्या हानि होती है?
  15. प्रश्न- आन्तरिक व्यापार व विदेशी व्यापार में क्या अन्तर है?
  16. प्रश्न- अन्तक्षेत्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में क्या समानताएँ है?
  17. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर वणिकवादी विचारधारा का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- एडम स्मिथ के निरपेक्ष लाभ के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  19. प्रश्न- रिकार्डो का तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- एडम स्मिथ के लागतों के निरपेक्ष लाभ सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- क्या अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए पृथक सिद्धान्त की आवश्यकता है?
  22. प्रश्न- एडम स्मिथ के स्वतन्त्र व्यापार सिद्धान्त का प्रतिपादन कीजिए।
  23. प्रश्न- उन कारणों को स्पष्ट कीजिए जिससे तुलनात्मक लागत सिद्धान्त विकासशील देशों या अर्द्ध विकसित देशों में लागू नहीं होता है?
  24. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के तुलनात्मक लाभ के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए कीजिए।
  25. प्रश्न- तुलनात्मक लागत लाभ सिद्धान्त की मान्यतायें बताइये।
  26. प्रश्न- लागतों में अन्तर के प्रकार बताइये।
  27. प्रश्न- तुलनात्मक लागत लाभ सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  28. प्रश्न- तुलनात्मक लागत सिद्धान्त अर्द्ध-विकसित देशों में लागू क्यों नहीं होता?
  29. प्रश्न- क्या आनुभाविक जाँच से तुलनात्मक लागत सिद्धान्त की सत्यता स्थापित की गयी है? स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- मिल द्वारा प्रतिपादित अन्तर्राष्ट्रीय मूल्यों के सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
  31. प्रश्न- व्यापार की शर्तों से क्या आशय है? व्यापार की शर्तों के प्रकार को समझाइये
  32. प्रश्न- व्यापार की शर्तों के प्रकार की व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- व्यापार की शर्तों को प्रभावित करने वाले घटकों की विवेचना कीजिए।
  34. प्रश्न- अर्द्धविकसित देशों की व्यापार की शर्तों के प्रतिकूल रहने के क्या कारण है? इनके सुधार हेतु सुझाव भी दीजिए।
  35. प्रश्न- अर्द्ध-विकसित देशों में व्यापार की शर्तों में सुधार हेतु सुझाव दीजिए।
  36. प्रश्न- "व्यापार की शर्तें एवं आर्थिक विकास आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।" व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- व्यापार की शर्तें आर्थिक विकास को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
  38. प्रश्न- संरक्षण के लिए शिशु उद्योग तर्क का परीक्षण कीजिए।
  39. प्रश्न- व्यापार की शर्तों का महत्व समझाइये ।
  40. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अवसर लागत सिद्धान्त की आलोचनात्मक समीक्षा व्याख्या कीजिए।
  41. प्रश्न- अवसर लागत का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- अवसर लागत सिद्धान्त की मान्यताएँ बताइये।
  43. प्रश्न- स्थिर अवसर लागत के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को समझाइये।
  44. प्रश्न- स्थिर लागत की दशा में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कब लाभप्रद होता है?
  45. प्रश्न- बढ़ती अवसर लागत की दशा में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को समझाइये।
  46. प्रश्न- घटती अवसर लागत की दशा में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को समझाइये।
  47. प्रश्न- अवसर सिद्धान्त किन मायनों में परम्परागत तुलनात्मक लागत सिद्धान्त से श्रेष्ठ है?
  48. प्रश्न- अवसर लागत सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  49. प्रश्न- वास्तविक लागत सिद्धान्त एवं अवसर लागत सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  50. प्रश्न- स्वतन्त्र व्यापार की अवधारणा का विश्लेषण कीजिए।
  51. प्रश्न- स्वतन्त्र व्यापार के पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
  52. प्रश्न- स्वतन्त्र एवं संरक्षण व्यापार में अन्तर लिखिये। स्वतंत्र व्यापार के गुण व दोष बताइये।
  53. प्रश्न- व्यापार संरक्षण नीति किसे कहते हैं? संरक्षण व्यापार से लाभ व हानियाँ बताइए।
  54. प्रश्न- अल्पविकसित या विकासशील या गरीब देशों में संरक्षण व्यापार की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक ब्लॉक से क्या आशय है? इसके विकास का सिद्धान्त उद्देश्य तथा प्रकारों को समझाइये।
  56. प्रश्न- व्यापारिक ब्लॉक की उत्पत्ति का सिद्धान्त समझाइए।
  57. प्रश्न- वैश्विक व्यापारिक ब्लॉकों के उद्देश्य तथा प्रकार बताइए।
  58. प्रश्न- वैश्विक व्यापारिक ब्लॉकों के लाभ व दोष समझाइए।
  59. प्रश्न- वैश्विक व्यापारिक ब्लॉकों के दोष / कमियाँ बताइए।
  60. प्रश्न- सीमा संघ के स्थैतिक तथा प्रावैगिक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- सीमा संघ के प्रावैगिक प्रभाव कौन-कौन से होते हैं?
  62. प्रश्न- एसियान क्षेत्रों की प्रगति पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- ब्रिक्स (BRICS) से आप क्या समझते हैं?
  64. प्रश्न- भारत, ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका संवाद मंच (IBSA) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- दक्षिण एशियाई अधिमान व्यापार ठहराव का क्या है? इसका औचित्य व प्रगति बताइये।
  66. प्रश्न- एशियाई क्षेत्र में सीमा शुल्क संघ बनाने में क्या समस्याएँ हैं?
  67. प्रश्न- भुगतान सन्तुलन से क्या आशय है? भुगतान सन्तुलन के विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- भुगतान सन्तुलन के विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- पूँजी खाता परिवर्तनशीलता क्या है? इसको लागू करने की पूर्व शर्तें क्या हैं?
  70. प्रश्न- "भुगतान सन्तुलन सदैव सन्तुलन में रहता है।' विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- भुगतान संतुलन के समायोजन तन्त्र का वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भुगतान असन्तुलन के क्या परिणाम होते हैं?
  73. प्रश्न- भुगतान असन्तुलन के कारणों को समझाइये।
  74. प्रश्न- मार्शल-लर्नर शर्त (Marshall - Lerner Condition) का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- भुगतान सन्तुलन व व्यापार सन्तुलन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- तुलनात्मक लागत का हैक्सचर-ओहलिन सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
  77. प्रश्न- हेक्सचर-ओहलिन सिद्धान्त की मान्यताओं को स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के परम्परावादी सिद्धान्त व हेक्सचर ओहलिन सिद्धान्त की तुलना कीजिए।
  79. प्रश्न- हेक्सचर-ओहलिन के सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  80. प्रश्न- तकनीकी अन्तराल सिद्धान्त (Technological Gap Model ) का विश्लेषण कीजिए।
  81. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभों को बताइये तथा यह बताइये कि इनकी माप किस प्रकार की जाती है?
  82. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की हानियों को बताइये।
  83. प्रश्न- लियोनतीफ का विरोधाभास क्या है? बताइये।
  84. प्रश्न- रिब्जन्सकी प्रमेय की व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- निर्धनताकारी विकास को समझाइए।
  86. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का पाल कुग्रमैन सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना तथा उद्देश्य बताइये।
  88. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के उद्देश्य बताइये।
  89. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यों की विवेचना कीजिए।
  90. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख उपलब्धियों तथा असफलताओं का वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक की कार्यप्रणाली की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- विश्व बैंक के कार्यों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  93. प्रश्न- विश्व बैंक के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- विश्व बैंक की सफलतायें या प्रगति बताइये।
  95. प्रश्न- विश्व बैंक की असफलतायें बताइये।
  96. प्रश्न- एशियन विकास बैंक की कार्यप्रणाली समझाइये ।
  97. प्रश्न- एशियाई विकास बैंक के मुख्य उद्देश्य बताइये।
  98. प्रश्न- एशियाई विकास बैंक की सदस्यता पूँजी व प्रबन्ध को बताइये।
  99. प्रश्न- "विश्व बैंक की स्थापना अर्द्धविकसित देशों के लिये वरदान है।' स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- विश्व बैंक पर टिप्पणी लिखिए।
  101. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  102. प्रश्न- भारत तथा विश्व बैंक पर टिप्पणी लिखिए।
  103. प्रश्न- 'तटकर एवं व्यापार समझौते' (गैट) पर एक लेख लिखिए।
  104. प्रश्न- व्यापार एवं प्रशुल्क पर हुए सामान्य समझौते (GATT) के प्रमुख उद्देश्य कौन-कौन से हैं?
  105. प्रश्न- गैट के मौलिक सिद्धान्त क्या थे?
  106. प्रश्न- गैट के प्रमुख कार्य बताइये।
  107. प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन क्या है? इसके प्रमुख उद्देश्यों को बताइये।
  108. प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य बताइये।
  109. प्रश्न- भारत को विश्व व्यापार संगठन से होने वाले सम्भावित लाभों एवं हानियों का विवेचन कीजिए।
  110. प्रश्न- भारत को विश्व व्यापार संगठन से होने वाली सम्भावित हानियों को बताइए।
  111. प्रश्न- अन्य विकासशील देशों के संदर्भ में भारत की स्थिति बताइये।
  112. प्रश्न- विकासशील देशों के दृष्टिकोण से विश्व व्यापार संगठन समझौते की व्याख्या कीजिए।
  113. प्रश्न- भारत को अंकटाड से होने वाले लाभों की व्याख्या कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतीय अर्थव्यवस्था पर भूमण्डलीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों को इंगित कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से आप क्या समझते हैं? प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के सन्दर्भ में सरकार द्वारा बनाए गए नीतियों का उल्लेख कीजिए?
  116. प्रश्न- गैट तथा अर्द्ध-विकसित राष्ट्रों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन के समझौते बताइये।
  118. प्रश्न- विश्व व्यापार संगठन का संगठनात्मक ढाँचा प्रस्तुत कीजिए।
  119. प्रश्न- बौद्धिक सम्पदा अधिकार से आप क्या समझते हैं?
  120. प्रश्न- "विश्व व्यापार संगठन गैट (GATT) की तुलना में कहीं अधिक विस्तृत एवं व्यापक वैधानिक अधिकार वाला संगठन है।' विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- व्यापार से सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार (ट्रिप्स) पर टिप्पणी लिखिए।
  122. प्रश्न- व्यापार से सम्बन्धित उपाय (ट्रिप्स) पर टिप्पणी लिखिए।
  123. प्रश्न- बहुपक्षीय व्यापार से आप क्या समझते हैं? विश्व व्यापार संगठन ने इस सम्बन्ध में क्या भूमिका निभायी है?
  124. प्रश्न- 'बहुपक्षीय मुद्दे तथा विश्व व्यापार संगठन' को स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की विवेचना कीजिए।
  126. प्रश्न- अंकटाड के उद्देश्य एवं स्वीकृत सिद्धान्तों को बताइये।
  127. प्रश्न- अंकटाड के कार्य बताइये।
  128. प्रश्न- दसवें अंकटाड पर टिप्पणी लिखिए।
  129. प्रश्न- विदेशी व्यापार में विविधता लाने की दृष्टि से अंकटाड की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- उत्तर-दक्षिण व्यापार संवाद क्या है?
  131. प्रश्न- दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Coorperation) से आप क्या समझते हैं?
  132. प्रश्न- विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड से आप क्या समझते हैं? यह एफडीआई से कैसे सम्बद्ध है?
  133. प्रश्न- विदेशी पूँजी किसे कहते हैं?
  134. प्रश्न- अभ्यंश से आप क्या समझते हैं? आयात अभ्यंश के विभिन्न प्रकारों को बताइये।
  135. प्रश्न- आयात अभ्यंशों के विभिन्न प्रकार बताइये।
  136. प्रश्न- आयात अभ्यंश के विभिन्न प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
  137. प्रश्न- आयांत अभ्यंश के उद्देश्य बताइये।
  138. प्रश्न- अभ्यंश प्रणाली के पक्ष में तर्क दीजिए।
  139. प्रश्न- प्रभावी संरक्षण पर टिप्पणी।
  140. प्रश्न- आयात प्रतिस्थापन से आप क्या समझते हैं?
  141. प्रश्न- आयात प्रतिस्थापन से लाभ बताइये।
  142. प्रश्न- आयाल अभ्यंश एवं प्रशुल्क की तुलना कीजिए।
  143. प्रश्न- राशिपातन के स्वभाव एवं उसके विभिन्न रूपों की विवेचना कीजिए।
  144. प्रश्न- स्वतन्त्र व्यापार से आप क्या समझते हैं? इसके पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
  145. प्रश्न- विदेशों में कम मूल्य पर बेचने की नीति से आप क्या समझते हैं?
  146. प्रश्न- प्रशुल्क के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- गैर-प्रशुल्क बाधाएँ (Non-tariff Barriers) किसे कहते हैं? इनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  148. प्रश्न- प्रशुल्क का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  149. प्रश्न- प्रशुल्क युद्ध से क्या आशय है?
  150. प्रश्न- प्रशुल्क युद्ध को चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  151. प्रश्न- भारत सरकार की प्रशुल्क नीतियाँ।
  152. प्रश्न- "अनुकूलतम प्रशुल्क की धारणा यह बताती है कि प्रशुल्क कितनी मात्रा में लगाये जायें ताकि देश का अधिकतम कल्याण हो।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
  153. प्रश्न- अनुकूलतम प्रशुल्क तथा कल्याण निहितार्थ पर टिप्पणी लिखिए।
  154. प्रश्न- विदेशी विनिमय बाजार के कार्यों का विवरण दीजिए।
  155. प्रश्न- विनिमय दर क्या है? विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन लाने वाले विभिन्न घटकों का विवेचन कीजिए।
  156. प्रश्न- विनिमय दर को प्रकाशित करने वाले घटकों की विवेचना कीजिए।
  157. प्रश्न- विदेशी विनिमय दर को प्रभावित करने वाले उन घटकों का वर्णन कीजिए जो विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन लाते हैं।
  158. प्रश्न- मुद्रा की परिवर्तनीयता से आप क्या समझते हैं?
  159. प्रश्न- क्रय शक्ति समता सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  160. प्रश्न- टकसाल दर समता सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  161. प्रश्न- विनिमय नियोजन क्या है? भारत में विनिमय नियन्त्रण के क्या उद्देश्य हैं? इस दिशा में भारत सरकार ने हाल के वर्षों में क्या किया है?
  162. प्रश्न- विनिमय नियंत्रण की विधियों का वर्णन कीजिए।
  163. प्रश्न- विनिमय नियन्त्रण की अप्रत्यक्ष विधियों को समझाइये ।
  164. प्रश्न- वैश्विक वित्तीय संकट का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  165. प्रश्न- विनिमय नियंत्रण के उद्देश्यों को बताइये।
  166. प्रश्न- परिवर्तनशील विनिमय दरों के पक्ष में तर्क दीजिए।
  167. प्रश्न- परिवर्तनशील विनिमय दर के विपक्ष में तर्क दीजिए।
  168. प्रश्न- अग्रिम विनिमय तथा तैयार सौदों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  169. प्रश्न- हेजिंग (Hedging) से आप क्या समझते हैं?
  170. प्रश्न- अन्तर्पणन क्रियाएँ क्या हैं?
  171. प्रश्न- मुद्रा की परिवर्तनीयता से आप क्या समझते हैं?

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